ढलाई शाला के बारे में संक्षिप्त जानकारी | Foundry Shop Short Note in Hindi
ढलाई शाला (Foundry Shop):- "ढलाई शाला वह स्थान है जहां पूर्ण ढलाई प्रक्रम के विभिन्न पदों के अनुसार आवश्यक उपकरणों एवं औजारों की सहायता से धातु पदार्थों की निर्धारित ढलाईयों का उत्पादन किया जाता है"। ढलाई प्रक्रम में विभिन्न पदों की क्रियाओं को करने के लिए एक ढलाई शाला पदों के नाम पर ही अलग-अलग स्थान निर्धारित किए जाते हैं जिन्हें ढलाई अनुभाग कहते हैं। ढलाई के विभिन्न पदों का संक्षिप्त विवरण निम्न है:-
1. पैटर्न निर्माण (Pattern Making):- इस क्रिया में जिस वस्तु को डाला जाता है उसकी ड्राइंग या मापों के आधार पर पैटर्न बनाया जाता है। पैटर्न के लिए उपयुक्त लकड़ी तथा धातु आदि पदार्थ का प्रयोग किया जाता है। पैटर्न निर्माण के अंतर्गत क्रोड़ बॉक्स भी बनाए जाते हैं जिनकी सहायता से क्रोड़ तैयार किए जाते हैं।
2. सकंचन या साँचा बनाना ( Moulding or Mould Making):- इस पद के अंतर्गत पैटर्न की सहायता से उपर्युक्त सकंचन पदार्थ में डाली जाने वाली वस्तु का सांचा तैयार किया जाता है। सकंचन पदार्थों के रूप में अधिकतर सकंचन रेत प्रयोग की जाती है। सांचे में पिघली धातु ठीक प्रकार से सभी स्थानों पर पहुंचाने तथा उसके ठीक प्रकार जमने आदि के लिए साँचे के साथ स्प्रू, रनर (runner), गेट (Gates) तथा राइजर (Riser) आदि का निर्माण भी किया जाता है।
3. संगलन (Melting) और धातु उड़ेलना (Pouring):- ढलाई के लिए वांछित धातु या मिश्र धातु को गलाने की क्रिया को संगलन कहते हैं। इस गले धातु पदार्थ को पिघली अवस्था में ही सांचे में डालने की क्रिया को उड़ेलना कहते हैं। धातु को गलाने के लिए को कुपोला भट्टी (Cupola), विद्युत भट्टी, कनवर्टर(Converter) क्रुसीबल भट्टी (Crucible Furnace) इत्यादि भाटियों का प्रयोग किया जाता है। धातु में अशुद्धियों को अलग करने के लिए फ्लक्स पदार्थों (चूना पत्थर, सोडियम कार्बोनेट, नाइट्रोजन क्लोरीन आदि) का प्रयोग किया जाता है। धातु को सांचे में उड़ेलते समय उसका तापमान ना तो आवश्यकता से अधिक ना ही कम होना चाहिए। धातु को सांचे में समान दर से उड़ेलना चाहिए।
4. ढलाई की सफाई करना(Cleaning):- पिघली धातु सांचे में डालने के पश्चात उसे जमने दिया जाता है। तत्पश्चात ढलाई को सांचा तोड़कर उसे अलग कर दिया जाता है। इस क्रिया को शेकआउट कहते हैं। शेकआउट के पश्चात ढलाई की सफाई की जाती है जिसे फैटलिंग क्रिया कहते हैं। फैटलिंग के अंतर्गत ढलाई से क्रोड, चिपकी रेत, ऑक्साइड स्केल, गेट, राइजर, रनर तथा फिन आदि अलग किए जाते हैं।
5. उष्माँ उपचार ( Heat Treatment):- ढलाई के बाद ठंडा होने पर धातु के जमने से उसमें आंतरिक प्रतिबल उपजते हैं। अतः इन प्रतिबलों को समाप्त करने और ढलाई की ग्रेन संरचना सुधारने के लिए उसका उष्माँ उपचार किया जाता है।
6. ढलाइयों का परीक्षण करना (Testing):- विभिन्न प्रतिक्रियाओं को ठीक प्रकार से ना करने से ढलाईयों या ढली वस्तुओं में अनेक प्रकार के दोष आ जाते हैं। ढलाई में विभिन्न दोष वाह्य तथा आंतरिक भी हो सकते हैं। ढलाई में उपर्युक्त दोषों को दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार के परीक्षण किए जाते हैं। यह परीक्षण भंजक या भंजक प्रकार के हो सकते हैं। जब अनेक ढलाइयों में से कुछ नमूने छांटकर उनको अमुक दोष के संभावित स्थान पर काटकर परीक्षण किया जाता है तो इसे भंजक परीक्षण कहा जाता है। अभंजक परीक्षण में ढलाइयों का आँख द्वारा, लेंस द्वारा या माइक्रोस्कोप द्वारा परीक्षण किया जाता है।
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