एनालॉग एवं डिजिटल मोबाइल सिस्टम | Analog and Digital Mobile System in Hindi
दोस्तों First Generation सैलुलर पद्धतियाँ एनालॉग थीं। Second generation की सैलुलर पद्धतियाँ डिजिटल हैं। AMPS एक एनॉलाग सिस्टम है जबकि अब कई नये डिजिटल सिस्टम उभर कर सामने आयी हैं।
एनॉलाग सैलुलर फोन की सीमायें (Limitations of analog cellular phones)-
एनॉलाग सैलुलर फोन असुरक्षित होते हैं। कोई भी व्यक्ति एक all band रेडियो रिसीवर (स्कैनर) की सहायता से ट्यूनिंग करके सैल में होने वाली बातचीत सुन सकता है। इसी तरीके से एक बार राजकुमारी Di तथा उनके प्रेमी की बातचीत पकड़ी गयी थी जो अखबारों की सुर्खियाँ बन गयी थीं। अधिकतर सैलुलर उपभोक्ता इस बात को नहीं समझते कि एनॉलाग सैलुलर फोन असुरक्षित हैं। वह अपने credit card number तथा अन्य confidential सूचनायें फोन पर देते रहते हैं।
एनालॉग एवं डिजिटल मोबाइल सिस्टम | Analog and Digital Mobile System in Hindi |
Air time की चोरी एक अन्य समस्या है। एक all band रिसीवर को कम्प्यूटर से जोड़कर कोई चोर कन्ट्रोल चैनल को मॉनीटर कर सकता है तथा मोबाइल टेलीफोन का 32 बिट सीरियल नम्बर तथा 34 बिट फोन नम्बर रिकॉर्ड कर सकता है। इन नम्बरों को वह अपनी कॉल हेतु तब तक प्रयोग कर सकता है जब तक शिकार को अपना अगला बिल नहीं मिल जाता। इस समस्या को encryption द्वारा solve किया जा सकता है।
डिजिटल सैलुलर टेलीफोन (Digital cellular telephone)
प्रथम जनरेशन सेलुलर सिस्टम एनालॉग थे लेकिन द्वितीय जनरेशन सैलुलर सिस्टम डिजिटल हैं। यूनाइटेड स्टेट्स में दो मुख्य डिजिटल सिस्टम है। इसमें से एक AMPS frequency allocation scheme के अनुरूप (compatible) है तथा इसको IS-54 तथा IS-135 नामक स्टैंटर्ड से निर्दिष्ट (specified) किया जाता है। दूसरा डिजिटल सिस्टम IS-95 नामक स्टैंडर्ड से निर्दिष्ट किया जाता है।
IS-34 एक dual mode (एनालॉग तथा डिजिटल) सिस्टम है तथा AMPS वाले 30 KHz चैनलों का ही प्रयोग करता है । सैल,बेस स्टेशन तथा MTSO (Mobile Telephone Switching Office) AMPS के समान ही कार्य करते हैं। केवल डिजिटल सिगनलिंग तथा डिजिटल वॉयस एनकोडिंग भिन्न होती हैं।
यूरोप में प्रयुक्त किया जाने वाला डिजिटल सिस्टम GSM (global system for mobile communication) के नाम से जाना जाता है।
डिजिटल ट्रांसमिशन मोबाइल कम्यूनिकेशन एनॉलाग से बेहतर होता है क्योंकि-
(i) वॉयस, डाटा तथा फैक्स को सिंगल सिस्टम में इन्टीग्रेट किया जा सकता है।
(ii) स्पीच कम्प्रेशन करके बैंडविड्थ कम की जा सकती है।
(iii) Error correcting codes प्रयोग करके ट्रांसमिशन क्वालिटी बेहतर बनाई जा सकती है।