उत्तर प्रदेश की कला, संगीत एवं नृत्य | Art, Music and Dance of Uttar Pradesh

Juhi
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उत्तर प्रदेश की कला, संगीत एवं नृत्य | Art, Music and Dance of Uttar Pradesh

नमस्कार दोस्तों, Gyani Guru ब्लॉग में आपका स्वागत है। इस आर्टिकल में उत्तर प्रदेश की  कला, संगीत एवं नृत्य से संबंधित जानकारी (Art, Music and Dance of Uttar Pradesh Related GK) दी गई है। जैसा कि हम जानते है, उत्तर प्रदेश, भारत का जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य है। उत्तर प्रदेश की प्रतियोगी परीक्षाओं में बहुत ज़्यादा कम्पटीशन रहता है। यह लेख उन आकांक्षीयों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो उत्तर प्रदेश सिविल सर्विस (UPPSC), UPSSSC, विद्युत विभाग, पुलिस, टीचर, सिंचाई विभाग, लेखपाल, BDO इत्यादि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे है। तो आइए जानते है उत्तर प्रदेश की कला, संगीत एवं नृत्य से संबंधित जानकारी-


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उत्तर प्रदेश की कला, संगीत एवं नृत्य | Art, Music and Dance of Uttar Pradesh


➤ उत्तर प्रदेश प्राचीनकाल से ही कला और संस्कृति का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक परिधि के अंतर्गत अवध, ब्रज, भोजपुरी, बुंदेलखंड आदि क्षेत्र आते हैं। राज्य सरकार ने राज्य की पुरातात्विक, ऐतिहासिक एवं कलात्मक गतिविधि के संरक्षण, प्रदर्शन, प्रणालीकरण आदि के लिए वर्ष 1957 में सांस्कृतिक विभाग की स्थापना की थी।

➤ स्थापत्य कला, चित्रकला व संगीतकला राज्य की प्राचीन व महत्वपूर्ण कलाएं हैं।


उत्तर प्रदेश की स्थापत्य कला


प्राचीन कालीन स्थापत्य कला

उत्तर प्रदेश में स्थापत्य कला के प्राचीनतम अवशेष मौर्य काल के हैं, जो सुनार के बलुआ पत्थरों द्वारा निर्मित हैं।

➤ उत्तर प्रदेश में स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना मौर्यकालीन सारनाथ का सिंह स्तम्भ है।

➤ मथुरा जिले के बोरादा, परखम एवं अन्य स्थानों से यक्षों एवं यक्षणियों की विशाल प्रतिमाएं प्राप्त हुई है। जो अशोक के समय की हैं।

➤ कुषाणकाल में मथुरा शैली अपने चरमोत्कर्ष पर थी।

➤ राज्य में मंदिर निर्माण कला का अत्यधिक विकास गुप्तकाल में हुआ। इस काल में निर्मित हुआ है।

➤ प्रसिद्ध मंदिर देवगढ़ (झांसी) का मंदिर, भीतरगांव (कानपुर) एवं भितरी (गाजीपुर) का मंदिर है।

➤ इन मंदिरों का निर्माण ईंटों से गुप्तकालीन मुत्तिका द्वारा निर्मित कलात्मक मूर्तियों के नमूने भीतरगांव (कानपुर) अहिच्छत्र (बरेली), राजघाट (वाराणसी) व सहेत (गोंडा-बहराइच) से प्राप्त हुए हैं।


मध्यकालीन स्थापत्य कला

➤ मध्यकालीन शर्की शासकों (जौनपुर) के संरक्षण में राज्य में स्थापत्य कला की शर्की शैली का विकास हुआ।

➤ 1408 ई. में इब्राहिम शर्की ने शर्की शैली में अटाला मस्जिद (जौनपुर) का निर्माण कराया था।

➤ बाबर ने अयोध्या और सम्भल में अनेक मस्जिदों का निर्माण करवाया था।

➤ उत्तर प्रदेश में मध्य काल में स्थापत्य कला को विकास अकबर और शाहजहां के समय में हुआ।

➤ हिंदू स्थापत्य निर्माण का प्रमुख स्थान वृंदावन है, जहां के अधिकांश मंदिरों का निर्माण मुगल शासकों अकबर के समय हुआ था। इन पर इस्लामिक स्थापत्य कला का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। इसके प्रमुख उदाहरण गोविंद देव मंदिर, जगत किशोर मंदिर तथा मदन मोहन मंदिर है।

➤ मुगलकालीन स्थापत्य कला की विशेषताओं में लाल बलुआ पत्थर एवं संगमरमर का उपयोग चिकने और रंग बिरंगे फर्श पर महीन पच्चीकारी तथा जड़ाऊ का कार्य प्रमुख है।

➤ राज्य में मुगलकालीन स्थापत्य के उत्कृष्ट नमूने चिकंदरा में स्थित अकबर का मकबरा, फतेहपुर सीकरी एवं ताजमहल तथा लखनऊ में स्थित छोटा इमामबाड़ा एवं जामा मस्जिद आदि है। शाहजहां द्वारा बनाए गए ताजमहल का निर्माण मकराना संगमरमर से हुआ है।


आधुनिक कालीन स्थापत्य कला

➤ आधुनिक काल में स्थापत्य का निर्माण मूख्य रूप से अवध के नवाबों तथा अंग्रेजों द्वारा कराया गया है।

➤ वाराणसी में 18वीं शताब्दी में निर्मित काशी विश्वनाथ मंदिर एवं दुर्गा मंदिर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने हैं।

➤ आधुनिक काल में स्थापत्य लखनऊ कला के उदाहरण आसफुद्दौला का इमामबाड़ा कैसरबाग स्थित मकबरा, लाल बारादरी, रूमी दरवाजा, हुसैनाबाद का इमामबाड़ा, छतर मंजिल, शाहनजफ, केसरबाग स्थित महल, दिलकुशा उद्यान, रेजीडेंसी, सिकंदरताग आदि हैं।

➤ लखनऊ कला का सर्वाधिक उत्कृष्ट उदाहरण आसफुद्दौला द्वारा निर्मित बड़ा इमामबाड़ा का मेहराबदार हॉल है।

➤ लखनऊ में आधुनिक कालीन स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषताएं द्वार पर मकराकृति, स्वर्ण छतरी से जड़ा गुम्बद, मेहराबदार बड़े मरे, बारहदरियां, तहखाने तथा भूलभुलैया हैं।

➤ आधुनिककालीन स्थापत्य में भवन निर्माण में ब्रिटिश तथा मुगल स्थापत्य का समन्वय भी देखने को मिलता है।


उत्तर प्रदेश में चित्रकला

➤ उत्तर प्रदेश में चित्रकला के उदाहरण प्रागतिहासिक काल के कन्दरा या मिर्जापुर शैली के शैलाश्रयों में निर्मित चित्र से लेकर आधुनिक युग तक विद्यमान हैं। राज्य की प्रमुख चित्र

शैलियां निम्नलिखित हैं-


मिर्जापुर शैली कन्दरा शैली

➤ प्राचीन शैल चित्रकारी के कुछ विशिष्ट नमूने, मिर्जापुर सोनभद्र के लखनिया दरी, यानिकपुर, होशंगाबाद, जोगीमारा, रायगढ़ आदि स्थानों की गुफाओं से प्राप्त हुए हैं।

➤ मिर्जापुर की गुफाओं के प्रागैतिहासिक काल के चित्रों में भावों तथा घटनाओं को रेखाओं के माध्यम से चित्रित किया गया है।

➤ इन चित्रों में आखेट, नृत्य की गतिविधियों के चित्रण की झलक देखने को मिलती है। 


मुगल शैली

➤ मुगल शैली की नींव हुमायूं ने रखी थी। मुगल शैली को आगरा शैली के नाम से जाना जाता है।

➤ हुमायूं ने फारस के चित्रकार मीर सैयद अली तथा ख्वाजा अब्दुस्समद को अपने दरबार में स्थान दिया। ख्वाजा अब्दपुरसमद द्वारा बनाए गए चित्र 'मुलसन' चित्रावली में संकलित है।

➤ इस शैली के चित्रों में युद्ध, पशु-पक्षियों, फूल-पत्तियों पौराणिक गाथाओं व मुगल राज दरबार क चित्र प्रमुख है।

➤ आइने-अकबरी में बसावन, बसवंत, महेश, लालमुकुंद, सावलदास सहित कुल 16 चित्रकारों के नाम दिए हैं। इस समय के 1200 चित्रों का संकलन जम्जनाया में है। यह मीर सैयद अली के संरक्षण में पूर्ण हुआ था।

➤ जहांगीर के काल को मुगल चित्रकला का स्वर्णयुग कहा जाता है। जहांगीर ने आगरा में चित्रशाला का निर्माण कराया था।


बुंदेली शैली

➤ चित्रकला की यह शैली 16वीं शताब्दी के बाद अपने अस्तित्व में आई, जो राज दरबार से प्रभावित शैली है।

➤ इस शैली की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके चित्रों में खाली स्थान को भरने के लिए गहराई का अहसास कराया गया है।


अपभ्रंश या कंपनी शैली

➤ औरंगजेब के काल में जब उसके द्वारा चित्रकला को संरक्षण देना बंद कर दिया गया, तो उस दौरान काशी नरेश ईश्वरी प्रसाद ने चित्रकारों को संरक्षण दिया। इन्हीं चित्रकारों के द्वारा अपभ्रंश या कंपनी शैली का विकास हुआ।


राजपूती शैली

➤ इस शैली का विकास मुख्य रूप से कन्नौज तथा बुंदेलखंड के चंदेल राजाओं द्वारा हुआ।

➤ इस शैली में जनसामान्य के जीवन को दर्शक माना है। प्रेम कथाएं, लोक कथाएं, धार्मिक रीति-रिवाज के विषयों पर चित्रकारी की गई है।


जैनी शैली

➤ यह शैली मथुरा में विकसित हुई थी। भारतीय चित्रकला के इतिहास में कागज पर की गई चित्रकारी सर्वप्रथम इसी शैली में की गई।


आधुनिक कालीन चित्रकला

➤ उत्तर प्रदेश में 20वीं शताब्दी के आरंभ में आधुनिक चित्रकला का विकास हुआ।

➤ वर्ष 1911 में लखनऊ में कला एवं शिल्प महाविद्यालय स्थापित किया गया तथा इसके प्रथम प्रधानाचार्य नेथेलियन हर्ड (वर्ष 1911-1925) बनाए गए।

➤ वर्ष 1925 में कला एवं शिल्प महाविद्यालय का प्रथम भारतीय प्रधानाचार्य अमित कुमार हल्दार को बनाया गया। ये रवींद्रनाथ टैगोर तथा अवनी बाबू के शिष्य थे। इनके द्वारा चित्रकला की वाश तथा हेम्पा नामक दो शैलियां आरंभ की गई, जो बाद में लखनऊ शैली के रूप में विकसित हुई।

➤ वर्ष 1945 में ललित मोहन सेन कला एवं शिल्प महाविद्यालय के प्रधानाचार्य बने। इन्होंने पेस्टल तथा ऑयल पेस्टल से चित्रण पर बल दिया। इन्होंने चित्रकला की ग्राफिक विद्या को जन्म दिया।

➤ वर्ष 1950 में नियुक्त प्राधानाचार्य सुधीर रंजन खास्गौर, को कला एवं शिल्प महाविद्यालय का सूर्य कहा जाता है।

➤ ये वर्ष 1963 में हरिहर लाल मेढ़ महाविद्यालय के प्रधानाचार्य बने तथा इन्होंने वाश शैली में चित्रित मेघदूतम श्रृंखला के लिए ख्याति प्राप्त की।


उत्तर प्रदेश में संगीत कला


➤ प्राचीनकाल में ही उत्तर प्रदेश महान संगीतज्ञों की जन्मभूमि तथा कर्मभूमि रही है।

➤ भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र की रचना की थी,बजिसे संगीत का बाइबिल कहा जाता है।

➤ राज्य में संगीत कला के विकास का विवरण निम्न प्रकार है-

➤ सामवेद से राज्य में संगीत कला के विकास का प्राचीनतम प्रमाण प्राप्त होता है।

➤ बुद्ध के समकालीन कौशाम्बी नरेश वीणा के कुशल वादक थे।

➤ 6वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य कश्यप, मातंगम, दत्तिल शार्दुल, अभिनवगुप्त तथा हरिपाल जैसे सगीतज्ञों ने उत्तर प्रदेश में संगीत कला के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

➤ मध्यकाल में संगीत का विकास दो प्रकार, भक्ति परम्परा तथा राजाश्रय से हुआ।

➤ संगीतबद्ध भजन गायन के द्वारा मंदिर में अर्चना की पद्वति वल्लभाचार्य ने विकसित की।

➤ विट्ठलनाथ ने आठ कवियों को मिलाकर अष्टछाप की स्थापना की। ये कवि नंददास, सूरदास, कुंभनदास, चतुर्भुदास, परमानंद दास, छत स्वामी, गोविंद स्वामी एवं कृष्णदास थे।

➤ सूरदासी मल्हार के प्रणेता सूरदास थे। संगीतशास्त्र के महान आचार्य स्वामी हरिदास का जन्म अलीगढ़ जिले के हरिदासुर नामक गांव में हुआ था जो संगीत सम्राट तानसेन, गोपाल, गमदास, दिवाकर पंडित तथा बंजू बावरा के गुरु धुपद-धमार की प्रसिद्ध गायिका ताज बेगम थी। ये ब्रज में कृष्ण भक्तिधारा गायिका के रूप में प्रसिद्ध हैं।

अमीर खुसरो मध्यकालीन संगीत परम्परा के प्रमुख संगीतज्ञ थे। इन्होंने सितार एवं तबले का आविष्कार किया। खुसरो ने ईरानी संगीत तथा ध्रुपद गायन शैली के मिश्रण में ख्याल गायन शैली विकसित की।

➤ ख्याल गायन शैली से भारतीय संगीत को वगों हिंदुस्तानी संगीत पद्वति तथा कर्नाटक संगीत पद्धति में विभाजित हुआ।

➤ 15वीं शताब्दी में जौनपुर के शासक सुल्तान हुसैन शर्की ने बड़ा ख्याल गायन शैली का आविष्कार किया तथा टप्पा शैली का प्रचलन किया।

➤ 19वीं शताब्दी में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के राजदरबार में संगीत कला की विकास हुआ।

➤ वाजिद अली शाह ने अख्खर पिया नामक बंदिश तैयार की। ये स्वयं रहस नृत्य में कृष्ण की भूमिका में प्रस्तुति देते थे।

➤ बिंदादीन महाराज अवध के संगीतज्ञ थे। उन्होंने कथक में ऊमरी गायन का समावेश किया तथा सनद पिया नामक बंदिश तैयार की खयाल गायकी को शास्त्रीय स्वरूप नियामत खां 'सदानंद' ने 18वीं शताब्दी में दिया।

➤ उस्ताद फैयाल खां को आधुनिक शास्त्रीय गायन का पिता माना जाता है। इन्हे आफताब-ए-मोसिकी (संगीत का सूर्य) कहा जाता है।

➤ टप्पा गायकी शैली मियां शेरी ने प्रचलित की थी। ये लखनऊ के प्रसिद्ध गायक है।



उत्तर प्रदेश के प्रमुख संगीत घराने


आगरा घराना

➤ आगरा घराना मुगलकालीन में संगीत का सबसे बड़ा केंद्र था।

➤ इसमें ख्याल, ध्रुपद-धमार गायन की परम्परा थी।

➤ इस घराने के गायकों में पंडित विश्वंभर दीन, फैयाज खां, अता हुसैन खां, भास्कर, बुवा बाखले, एसएस रातंजनकर, दिलीप चंद्र बेदी, स्वामी वल्लभदास, गोविंद राव टेम्बे व मदपुरै रामास्वामी, शफी अहमद, कल्लन खां, सीआर व्यास, केजी गिंदे भी शामिल हैं।

➤ इस घराने की दूसरी शाखा में ठुमरी गायन की प्रधानता है। इसे कव्वाल बच्चा घराना भी कहते हैं।

➤ कव्वाल बच्चों का एक अलग घराना है। इसके प्रमुख प्रतिनिधियों में सादिक अली खां, मुहम्मद खां, फजले अली खां, करम अली खां आदि शामिल हैं।


किराना घराना

➤ ख्याल गायिकी में इस घराने का प्रसिद्धि और लोकप्रियता में प्रमुख स्थान है।

➤ प्रसिद्ध बीनकार एवं ध्रुपद गायक उस्ताद बंदे अली खां से इस घराने की शुरुआत मानी जाती है, परंतु इसे घराने का दर्जा शामली जिले के कैराना नामक स्थान में जन्मे उस्ताद अब्दुल करीम खां और उस्ताद अब्दुल वहीद खां ने दिलाया।

➤ किराना घराने की गंगूबाई हंगल को वर्ष 2002 में पद्म पुरस्कार मिला था।

➤ इस घराने के अन्य प्रमुख संगीतकार बालकृष्ण बुवा, स्वामी गन्धर्व, भीमसेन जोशी, बाबूमान, काले खां, सुरेश, गन्ने खां, रोशन आरा बेगम, बहरे बुवा, हीराभाई बड़ोदकर, प्रभा अन्ने आदि प्रमुख हैं। अतरौली घराना

अलीगढ़ जिले में स्थित अतरौली कस्बा अनेक संगीतज्ञ परिवारों के लिए प्रसिद्ध रहा है।

➤ इस घराने के संगीतज्ञ ध्रुपद के साथ ही ख्याल गायन में भी प्रसिद्ध थे।

➤ इस घराने के संस्थापक जूनागढ़ रियासत से सम्बद्ध दो भाई काले खां और चांद खां माने जाते हैं।

➤ दुल्लू खां और छज्जू खां इस घराने के आरंभिक संगीतज्ञों में से थे, जो ध्रुपद-धमार गायन के लिए प्रसिद्ध थे।

इस घराने के प्रमुख गायक किशोरी अमोनकर, रत्नाबाई पई, पदमावती, भोंपू बाई, मल्लिकाअर्जुन मंसूर, शालिग्राम गोखले, गुलाम गैस खां, चिम्न खां, धापत खां, हरयू खां, दौलत खां, अल्लादिया खां, केसबाई केरकर आदि हैं।


रामपुर घराना

➤ सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ आचार्य बृहस्पति के अनुसार इस घराने के संस्थापक नियामत खां थे।

➤ सितार वादक पंडित रविशंकर रामपुर घराने से सम्बंधित हैं।

➤ रामपुर घराने के प्रमुख संगीतकारों में उस्तद वजीर खां, उस्ताद नजीर खां, उस्ताद बहादपुर हुसैन खां, उस्ताद अमीर खां, उस्ताद इनायत हुसैन खां आदि प्रमुख है।


बनारस घराना

➤ काशी (वाराणसी) में राजा काशीराज ने कई प्रसिद्ध संगीतज्ञों को आश्रय दिया। इन्होंने ही बनारस घराना विकसित किया।

➤ ठुमरी गायिकी 'गिरिजा देवी' का सम्बंध बनारस घराने से है।

➤ इस घराने के अधिकांश गायक व गायिकाएं चारों पट की गायिकी, यानि खयाल के साथ ही मरी-टप्पा, कजरी-चवैती, भजन-गजल और ध्रुपद-धमार के गायन में पारंगत रहे हैं। परंतु इस घराने में ठुमरी अंग की गायिकी को अधिक प्रसिद्धि मिली।

➤ इस घराने के प्रमुख संगीतकारों में ठाकुर दयाल मिश्र, पंडित दिलराम मिश्र, शिव सहाय मिश्र, रामसेवक मिश्र, ज्वाला प्रसाद मिश्र एवं अमरनाथ पशुनाथ मिश्र शिवदास प्रयाग जी, गिरिजा देवी, बख्तावर मिश्र आदि प्रमुख हैं।


सहारनपुर घराना

➤ सूफी संत खलीफा मोहम्मद जमा से इस घराने का आरंभ माना जाता है।

➤ निर्मोल शाह को ध्रुपद की चारों वानियों-ख्याल, अंग व वीणा वादन में प्रयोणता प्राप्त थी।

➤ इस घराने के संगीतकारों में रहीमुद्दीन खा, नसीर मोइनुद्दीन डागर, नसीर अमीनुद्दीन डागर, नसीर जहीरूद्दीन डागर, नसीर फैयाजुददीन डागर, बंदे अली खां, बहराम खां, जाकिरूद्दीन खां, नसीरुद्दीन खां आदि प्रमुख हैं।


फतेहपुर-सीकरी घराना

➤ मुगल बादशाह जहांगीर के काल में दो भाइयों जनू खां और जोरावर खां से इस घराने की शुरुआत मानी जाती है।

➤ इस घराने के गायक ध्रुपद और ख्याल गाया करते थे।

➤ इस घराने के प्रमुख संगीताकरों में दूल्हे खां, घसीट खां, छोटे खां, गुलाम रसूल खां, मदार बख्श, सैयद खां आदि शामिल हैं।


लखनऊ घराना

➤ अवध की राजधानी लखनऊ में विकसित हुआ। यह ख्याल तथा ध्रुपद गायन के लिए प्रसिद्ध है।

➤ नवाब वाजिद अली शाह संगीत व कला प्रेमी थे। उनके शासनकाल को अवध की कला की दृष्टि से स्वर्ग युग कह सकते हैं। इनके दरबार में ठुमरी एवं भाव का प्रमुख प्रचलन था।

➤ लखनऊ ख्याल गायकी का पितामह मुर्शिद अली खां को माना जाता है।

➤ लखनऊ घराने से बेगम अख्तर गजल व गुलाम नबी शोरी टप्पा शैली से सम्बंधित हैं।

➤ प्रसिद्ध पखावज वादक कोउद सिंह, पंडित अयोध्या प्रसाद, पंडित सखाराम हैं।

➤ सादिक अली खां इस घराने के प्रसिद्ध वीणा वादक हैं तथा अली खां इस घराने के सारंगी वादक हैं।


इलाहाबाद घराना

➤ इलाहाबाद की प्रयाग संगीत समिति देश के प्रमुख संगीत संस्थानों में हैं।

➤ जानकीबाई ऊ छप्पन छपुरी, केसरबाई, कृष्णा देवी, मुनीर खातून बेगम आदि प्रसिद्ध गायिकाएं है।

➤ यहां सरोद वादन में करामत उल्ला खां, सारंगी वादन के लिए यूफफ खां और प्रो. लाल जी तथा बांसुरी वादन के लिए रघुनाथ सेठ व हरिप्रसाद चौरसिया प्रसिद्ध हैं।


उत्तर प्रदेश के प्रमुख लोकगीत


➤ राज्य के प्रमुख लोकगीतों का विवरण इस प्रकार है-

➤ कजरी वर्षा ऋतु का लोकगीत है। मिर्जापुर जिले में कजरी के चार अखाड़े पंडित शिवदास मालवी अखाड़ा, जहांगीर अखाड़ा, बैरागी अखाड़ा एवं अक्खड़ अखाड़ा है। यह वाराणसी, गोरखपुर, इलाहाबाद, अवध क्षेत्रों में गाई जाती है।

➤ मालिनी अवस्थी, ऊषा गुप्ता, उर्मिला श्रीवास्तव तथा अजीता श्रीवास्तव प्रमुख कजरी लोक गायिकाएं हैं।

➤ सोहर पूर्वांचल विशेष्कर अवध क्षेत्र का प्रसिद्ध लोकगीत है, जो बच्चों के जन्म आदि अवसरों पर गाया जाता है।

➤ आल्हा बुंदेलखंड क्षेत्र में प्रचलित वीर रस में गाया जाने वाला लोकगीत है।

➤ लावणी रुहेलखंड क्षेत्र में गाया जाता है। पवांरा (नृत्य प्रधान) व हरदौल पाठ बुंदेलखंड का लोकगीत है।

➤ ईसुरी फाग का प्रचलन बुंदेलखंड में पाया जाता है।

➤ रसिया झूला, होली, फाग ब्रज क्षेत्र में गए जाते हैं।

➤ रागिनी व ढोला पश्चिमी क्षेत्र में गाया जाता है।

➤ पूरन भगत, मृतिहरि, निर्गुन यह साधुओं द्वारा गए जाने वाले भक्तिपूर्ण गीत हैं।


उत्तर प्रदेश में प्रमुख सांस्कृतिक संस्थान


प्रमुख सास्कृतिक संस्थानों का वर्णन इस प्रकार है-


भारतखंडे संगीत संस्थान

➤ पंडित विष्णु नारायण भरतखंडे ने संगीत की शिक्षा हेतू लखनऊ में 15 जुलाई, 1926 को मौरिस कालेज औफ हिंदुस्तानी म्यूजिक की नींव रखी। इसका नाम वर्ष 1960 में भातखंडे हिंदुस्तानी संगीत महाविद्यालय रखा गया।

➤ वर्ष 2000 में इस महाविद्यालय को डीम्ड विश्वविद्यालय का स्तर प्रदान किया गया तथा इसका नाम परिवर्तित करके भारतखंडे संगीत संस्थान, लखनऊ कर दिया गया।


उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी

➤ राज्य सरकार द्वारा लखनऊ में राज्य ललित कला अकादमी की स्थापना 5 फरवरी, 1962 को संस्कृति विभाग के अधीनस्थ पूर्वतः वित्तपोषित स्वायत्तशासी संस्था के रूप में की गई।

➤ इस अकादमी का मुख्य उद्देश्य कलाकारों को प्रोत्साहित करना एवं कला के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्रदान करना है।


कला एवं शिल्प महाविद्यालय 

➤ इस संस्थान की स्थापना वर्ष 1911 में लखनऊ में की गई थी। यह राज्य के श्रेष्ठ कला एवं शिल्प महाविद्यालयों में से एक है।

➤ यह कला एवं शिल्प के क्षेत्र में स्नातक, परास्नातक डिग्री एवं डिप्लोमा कोर्स उपलब्ध कराता है।


जनजाति एवं लोककला संस्कृति संस्थान

➤ राज्य के जनजातीय एवं लोक संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु लोककला एवं जनजातीय संस्कृति संस्थान की स्थापना वर्ष 1996 में लखनऊ में) की गई।


उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी

➤ उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की स्थापना 19 नवंबर, 1963 को लखनऊ में की गई।

➤ यह अकादमी संगीत, नृत्य, नाटक, लोक संगीत तथा लोकनाट्य की परंपराओं के प्रचार-प्रसार, एवं प्रशिक्षण का महत्वपूर्ण कार्य करती है।


रवींद्रालय

➤ इसकी स्थापना वर्ष 1961 में लखनऊ के चारबाग में हुई थी।

➤ यह रंगमंच की दृष्टि से शहर का प्रमुख ऑडिटोरियम है।


भारतेंदु नाट्य अकादमी

➤ इसकी स्थापना अगस्त, 1975 में लखनऊ में की गई थी। इसके द्वारा द्विवार्षिक डिप्लोमा पाठ्यक्रम के अंतर्गत छात्रों को नाट्यकला के विभिन्न पक्षों में गहन व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।

वर्ष 1988 में अकादमी ने रंगमंडल की स्थापना की थी।


राष्ट्रीय कथक संस्थान

➤ इसकी स्थापना संस्कृति विभाग के अंतर्गत स्वायतशासी संस्थान के रूप में वर्ष 1989 में लखनऊ में की गई थी।

➤ इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर कथक के विविध घरानों की परंपराओं का अभिलेखीकरण, युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहन, वरिष्ठ कलाकारों की संरक्षण एवं कथक नृत्य का संवर्द्धन करना है।


उत्तर प्रदेश में नृत्यकला

➤ उत्तर प्रदेश राज्य में दो प्रकार की नृत्यकला शास्त्रीय नृत्यकला व लोक नृत्यकला प्रचलित हैं। जिनका विवरण इस प्रकार है-

शास्त्रीय नृत्यकला : कत्थक

➤ राज्य की एकमात्र शास्त्रीय नृत्यकला कथक शैली उत्तर प्रदेश की देन है। राज्य में नृत्य की शुरुआत मंदिर के फजारियों द्वारा कथा वाचन के समय हाव-भाव के प्रदर्शन से मानी जाती हैं।

➤ अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में इसका विकास हुआ। इस नृत्य को मुस्लिम शासकों का संरक्षण प्राप्त हुआ।

➤ ठाकुर प्रसाद को कथक उन्नायक व समर्थक कहा जाता है।

➤ कथक में ठुमरी गायन का प्रवेश महाराज बिंदादीन ने कराया था।

➤ कालका महाराज के फत्र लच्छू महाराज, अच्छन महाराज, शम्भू महाराज और उनके पौत्र बिरजू महाराज ने कथक की विशेषताओं को परिष्कृत किया।

➤ उत्तर प्रदेश मे कथक नृत्य के केंद्र को लखनऊ घराना नाम से जाना जाता है।

➤ प्रमुख कथक नृत्य कलाकार ठाकपुर प्रसाद, गोपी कृष्ण चौबे, तारा देवी, अलकन्दाख सितारा देवी, सुखदेव प्रसाद, शम्भू महाराज, दुर्गा महाराज, बिरजू महाराज, कालका महाराज और लच्छू महाराज आदि हैं।


यह भी पढ़ें:-

उत्तर प्रदेश के लोक नृत्य

➤ राज्य के प्रमुख लोकनृत्यों का क्षेत्रीय आधार पर वर्णन निम्नवत् है-


ब्रज क्षेत्र के लोकनृत्य

रास नृत्य - यह रासलीला के दौरान किया जाने वाला नृत्य है।

झूला नृत्य - यह नृत्य श्रावण मास में किया जाता है।

घड़ा नृत्य- यह एक घड़ा नृत्य है, जिसमें बैलगाड़ी अथवा रथ के पहिए पर कई बड़े रखे जाते हैं तथा फिर उसे सिर पर रख कर नृत्य किया जाता है।

चरकुला नृत्य - इस नृत्य में 108 दीपकों का 120 चरकुला (पिंजरा) महिलाओं द्वारा सिर पर रख कर नृत्य किया जात है।

मयूर नृत्य - इस नृत्य में नर्तक मोर पंख के वस्त्र धारण करते हैं।


बुंदेलखंड क्षेत्र के लोकनृत्य

धुरिया नृत्य - यह नृत्य कुम्हार (प्रजापति) जाति के लोगों द्वारा स्त्री वेश धारण करके किया जाता है।

कानरा नृत्य - यह नृत्य धोबी समाज द्वारा विवाह उत्सव में किया जाता हैं

पाई नृत्य - यह नृत्य महिलाओं द्वारा वसंतोत्सव तथा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर मयूर की भांति किया 

 जाता है। अतः इसे मयूर नृत्य भी कहा जाता है।

ख्याल नृत्य - यह नृत्य पुत्र के जन्मोत्सव पर सिर पर बांस और रंगीन कागज से बना मंदिर रख कर किया जाता है।

शौरा या सैरा- यह किसानों द्वारा फसल कटाई के समय किया जाता है।

कार्तिक नृत्य - यह नृत्य कार्तिक (अक्तूबर-नवंबर) महीने में नती द्वारा श्रीकृष्ण तथा गोपी बनकर किया जाता है।

देवी नृत्य - इस नृत्य में एक नर्तक देवी का रूप धारण करता है। व शेष नृत्यकार उस के सामने नृत्य करते हैं।

दीप नृत्य - यह नृत्य अहीरों द्वारा प्रज्वलित दीपों से भरी थाली वा परात सिर पर रख कर किया जाता हैं।


पूर्वांचल क्षेत्र के लोकनृत्य

धोबिया नृत्य- इसे मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। यह मुख्य रूप से धोबी समुदाय द्वारा किया जाता है।

कठघोड़वा- यह मांगलिक अवसर पर किया जाने वाला नृत्य है। इस नृत्य में लकड़ी तथा बंस से निर्मत व रंग-बिरंगे वस्त्रों द्वारा सुसज्जित घोड़े पर बैठकर नृत्यकार नृत्य करता है।

धीवर नृत्य - यह कहार जाति द्वारा शुभ अवसरों पर किया जाता है।


अवध क्षेत्र के लोकनृत्य

जोगिनी नृत्य -यह नृत्य विशेषकर रामनवमी है अवसर पर किया जाता है। पुरुष, महिलाओं का रूप धारण कर यह नृत्य करते हैं।

कलाबाजी नृत्य -अवध के लोग मोरवाजा लेकर कच्ची घोड़ी पर बैठकर यह नृत्य करते हैं।


मिर्जापुर और सोनभद्र के लोकनृत्य

करमा नृत्य - यह नृत्य खरवार जनजाति द्वारा किया जाता हैं।

ठडिया नृत्य - यह नृत्य संतान कामना हेतु देवी सरस्वचती के लिए किया जाता है।

चौलर नृत्य - यह नृत्य अच्छी फसल की कामना हेतु किया जजाता है।

ढरकी हरी नृत्य - यह जनजातियों का नृत्य है। 


उत्तर प्रदेश की नाट्यकला


➤  नाट्यकला मुख्यतः दो प्रकार की होती है- 1. शास्त्रीय नाट्यकला 2. लोकनाट्य

शास्त्रीय नाट्यकला

➤ वाराणसी के भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक शास्त्रीय हिंदी रंगमंच का जनक कहा जाता है।

➤ उत्तर प्रदेश के भारतेंदु हरिश्चंद्र, बालकृष्ण भट्ट, नवीन देवकीनंदन त्रिपाठी, गोपाल दास, शीतला प्रसाद, माधव शुक्ल, राधाकृष्ण दास को हिंदी नाटक का प्रजापति कहा जाता है।

➤ 1843 ई. में अवध के नवाब वाजिद अली शाह द्वारा लिखित किस्सा राधा कन्हैया तथा नवाब के संरक्षण में सैयद आगा हसन लखनवी द्वारा  लिखित इंद्रसभा मंचन का उल्लेख मिलता है। 

➤ नहुष विशुद्ध नाटक रीति से लिखा गया पहला नाटक है। इस नाटक के लेखक भारतेंदु के पिता बाबू गोपाल चंद (गिरधर) थे।

➤ आधुनिक विधि द्वारा मंचित किया गया प्रथम नाटक जानकी मंगल है। इसके लेखक शीतल प्रसाद त्रिपाठी हैं।


राज्य के प्रमुख शस्त्रीय नाट्यकर्मी

➤ मोहन राकेश, सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ (लखनऊ), विनोद रस्तोगी (मुंशी इतावली लाल), अशो रस्तोगी, श्रीमती गिरीश रस्तोगी, अशोक भौमिक विमल रैना, वीरेंद्र शर्मा, विपिन टंडन, रामचंद्र गुप्त, डा. सचिन तिवारी, डॉ. अनुपम आनंद, राजेंद्र शर्मा आदि हैं।


उत्तर प्रदेश राज्य के लोकनाट्य

उत्तर प्रदेश राज्य के प्रमुख लोकनाट्य निम्न प्रकार है-


रामलीला

➤ रामलीला में भगवान राम के जीवन की विभिन्न घटनाओं का मंचन किया जाता है। इसका मंचन राज्य में अवधी तथा अन्य स्थानीय भाषाओं में किया जाता है।

➤ रामलीला का आयोजन नवरात्रि के दिनों में किया जाता है। वाराणसी की रामलीला को राज्य की प्रतिनिधि रामलीला का दर्जा दिया जाता है।

➤ इलाहाबाद (प्रयागराज) की रामलीला अपनी विशिष्ट शैली के लिए प्रसिद्ध है।


रासलीला

➤ रासलीला कृष्ण जन्माष्टमी के उत्सव पर श्री कृष्ण तथा गोपियों के मध्य लीलाओं का मंचन है। रामलीला ब्रजभाषा तथा ब्रज शैली में की जाती है।


नौटंकी

➤ नौटंकी उत्तर प्रदेश का सर्वाधिक प्रचलित लोकनाट्य है।

➤ राज्य में नौटंकी की दो शैलियां कानपुरी शैली व हाथरसी शैली प्रचलित हैं।

➤ दोनों शैलियों में प्रस्तुतीकरण संवाद तथा गायन के साथ किया जाता है।

➤ कानपुरी नौटंकी शैली मनोरंजन प्रधान तथा हाथरसी शेली वीर रस तथा भक्ति प्रधान है।

➤ नौटंकी के प्रमुख कलाकार-मधु अग्रवाल (निदेशक, कानपुर शैली), विनोद रस्तोगी (निदेशक) उर्मिला कुमार, चुन्नीलाल, डॉ. कुष्ण मोहन सक्सेना, कमलेश लता, राधा-रानी कुष्णाबाई आदि हैं।


राहुला लोकनाट्य

➤ यह बुंदेलखंड का लोकनाट्य है। इसमें शिक्षाप्रद कहानियों का मंचन किया जाता है।


कठपुतली लोकनाट्य

➤ उत्तर प्रदेश राज्य में कठपुतली के ग्लब्स एवं रॉड पपेट का प्रहार प्रचलित है।

गुलाबो-'सिताबों पहला ग्लब्स पपेट है, जो कि नवाब वाजिद अली शाह के जीवन पर आधारित है।


उत्तर प्रदेश में मेले


➤ उत्तर प्रदेश में प्रतिवर्ष लगभग 2250 मेलों का आयोजन किया जाता है।

➤ राज्य में सर्वाधिक 86 मेले मथुरा में फिर कानपुर (80), हमीरपुर (79), झांसी (78), आगरा (72) तथा फतेहपुर (70) मेले लगते हैं।

➤ सबसे कम मेले पीलीभीत में लगते हैं।


उत्तर प्रदेश के प्रमुख वार्षिक उत्सव

➤ संस्कृति विभाग द्वारा राज्य में प्रत्येक वर्ष अनेक उत्सवों पर आयोजन किया जाता है। कुछ प्रमुख उत्सवों के बारे में संक्षिप्त वर्णन निम्नवत्

ताज महोत्सव - प्रत्येक वर्ष फरवरी माह में ताजनगरी आगरा' में आयोजित इस पर्यटन महोत्सव में मुगलकालीन संस्कृति तथा भारतीय ललित कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है।

लखनऊ महोत्सव - इस महोत्सव में अवध के परम्परागत संगीत, नृत्य, वैभव, नजाकत एवं नफासत का प्रदर्शन कराया जाता है।

कम्पिल उत्सव - फर्रुखाबाद के रामेश्वर नाथ, कामेश्वर नाथ तथा जैन मंदिरों में आयोजित इस पर्यटन उत्सव में विभिन्न धार्मिक सांस्कृति कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

वाराणसी उत्सव- इस उत्सव में भारतीय धर्म एवं संस्कृति तथा ज्ञान-विज्ञान का प्रस्तुतीकरण किया जाता है। यह एक प्रर्यटन उत्सव है।

सुलहकुल उत्सव - हिंदू-मुस्लिम एकता का यह उत्सव आगरा में मनाया जाता है।

त्रिवेणी महोत्सव - प्रत्येक वर्ष फरवरी में प्रयागराज स्थित बोट क्लब पर होने वाले इस आयोजन में प्रदेश की मिश्रित संस्कृति का आयोजन कराया जाता है।

सरधना महोत्सव- राज्य सरकार के सहयोग से इस महोत्सव का आयोजन प्रत्येक वर्ष मेरठ के सरधना में किया जाता है।

कजरी महोत्सव - यह महोत्सव प्रत्येक वर्ष मिर्जापुर में मनाया जाता है।

झांसी महोत्सव - राज्य के संस्कृति विभाग द्वारा प्रत्येक वर्ष फरवरी माह में पांच दिवसीय आयुर्वेद महोत्सव का आयोजन किया जाता है।

सैफई महोत्सव - प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में इस महोत्सव का आयोजन सैफई (इटावा) में किया जाता है।

गंगा महोत्सव - राज्य सरकार के सहयोग से प्रत्येक वर्ष इस महोत्सव का आयोजन वाराणसी में किया जाता है।

लठमार होलिकोत्सव - प्रत्येक वर्ष फाल्गुन महीने में मथुरा जिले में बरसाना तथा नंदगांव में यह उत्सव आयोजित होता है।

कबीर उत्सव - संत कबीर विषयक जीवन दर्शन को अधिकाधिक प्रसारित करने हेतु संत कबीर नगर जनपद के मगहर में प्रत्येक वर्ष इस उत्सव मेले का आयोजन किया जाता है।

यमुना महोत्सव - प्रत्येक वर्ष चैत्र छठ को मथुरा के विश्राम घाट पर यह महोत्सव मनाया जाता है।

बिठूर गंगा महोत्सव - कानपुर में बिठूर नामक स्थान पर प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में गंगा के तट पर इस महोत्सव का आयोजन किया जाता है।

कन्नौज उत्सव - पर्यटन विभाग द्वारा यह उत्सव प्रत्येक वर्ष कन्नौज में मनाया जाता है। 

सोन महोत्सव- यह महोत्सव प्रत्येक वर्ष सोनभद्र जिले में मनाया जाता है।

वाटर स्पोर्ट्स फेस्टिवल - राज्य सरकार के सहयोग से प्रत्येक वर्ष इस फेस्टिवल का आयोजन इलाहाबाद में किया जाता है।


चलचित्र (फिल्म)

➤ भारत के फिल्म उद्योग (हिंदी) में दर्शकों एवं कलाकारों दोनों ही दृष्टि से उत्तर प्रदेश का महत्वपूर्ण स्थान है। बॉलीवुड के हिंद फिल्मों का सबसे बड़ा बाजार उत्तर प्रदेश ही है।

➤ फिल्म उद्योग के अनेकों जाने माने कलाकार यथा - नौशाद, मजरूह सुल्तानपुरी, जावेद अख्तर, शबाना आजमी, कैफी आजमी, शकील बदायूंनी, नीरज अन्जान, इन्दीवर, मासूम रजा, अमिताभ बच्चन, नरगिस दत्त, बीना राय, राज बब्बर आदि उत्तर प्रदेश के ही निवासी रहे। 

➤ भारत की पहली बोलती फिल्म 'आलम आरा' (1931) के निर्देशक वी.पी. मिश्र थे, जो कि देवरिया के रहने वाले थे।

➤ प्रदेश के लोक भाषाओं, यथा-ब्रज, भोजपुरी, बुंदेली आदि में से भोजपुरी में सर्वाधिक फिल्मों का निर्माण किया जाता है।

➤ रचनात्मक एवं उद्देश्यपूर्ण फिल्मों को निर्माण को ध्यान में रखकर 10 सितंबर, 1975 'उत्तर प्रदेश चलचित्र निगम' की स्थापना की है। सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा प्रदेश के सांस्कृतिक, पर्यटन, कृषि, साहित्यिक, औद्योगिक, ग्राम विकास तथा अन्य विकास संबंधी विषयों पर वृत्त चित्र एवं समाचार चित्र निर्मित किये जाते हैं।

➤ अब तक 100 से अधिक समाचार चित्र व 165 से अधिक वृत्त चित्र तैयार किये जा चुके हैं। लखनऊ मेरा लखनऊ, महात्मा गांधी और उत्तर प्रदेश, चोर-चोर, नैमिषारण्य, ब्रज होली, ग्राम्या, बुंदेलखंड विकास की चमक हर आंख में आदि प्रमुख वृत्तचित्र हैं। नोएडा छोटी फिल्म सिटी मानी जाती है।

➤ राज्य में फिल्म के विकास हेतु फिल्म विकास परिषद का गठन किया गया है। फिल्म को उद्योग का दर्जा देते हुए (1999 में प्रथम फिल्म) 2015 में संशोधित फिल्म नीति की घोषणा की गई, इसके उद्देश्य एवं चुनौतियां इस प्रकार हैं-

➤ राज्य में फिल्मों के विकास व निर्माण तथा फिल्म उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए फिल्म विकास लिपि की स्थापना की गई है।

➤ फिल्म नीति के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु 'उत्तर प्रदेश फिल्म बंधु' का गठन किया गया है।

➤ प्रदेश में निर्मित होने वाली फिल्मों के निर्माण हेतु वित्तीय सहायता की संस्तुति करने का दायित्व फिल्म बंधु का है। 


कला, उत्सव, मेले, पर्व से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य


➤ प्रदेश में संस्कृति विभाग की स्थापना की गई - 1957 में

➤ प्रदेश के प्रमुख सांस्कृतिक क्षेत्र - ब्रज, अवध, बुंदेलखंड, रूहेलखंड तथा भोजपुरी क्षेत्र

➤ प्रदेश में स्थापत्य कला के प्राचीनतम (मौर्यकालीन) नमूने प्राप्त होते हैं-सारनाथ, कौशाम्बी, कुशीनगर आदि स्थानों से

➤ मंदिर निर्माण कला का विकास हुआ-गुप्त काल में

➤ गुप्तकालीन मंदिरों के साक्ष्य मिलते हैं - देवगढ़ (झांसी), भीतरगांव (कानपुर) तथा भीतरी (गाजीपुर) से

➤ मध्यकाल में स्थापत्य कला की दो प्रमुख शैलियां - शर्की और मुगल (आगरा) शैली

➤ शर्की शैली का सर्वोकृष्ट नमूना - अटाला मस्जिद (जौनपुर)

➤ मुगल शैली का सर्वोत्कृष्ट नमूना – ताजमहल

➤ आधुनिक स्थापत्य की प्रमुख शैली है - लखनऊ शैली

➤ लखनऊ शैली का विशुद्ध नमूना है - बड़े इमामबाड़े का हाल



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