उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जनजातियाँ | scheduled Tribes of Uttar Pradesh
नमस्कार दोस्तों, Gyani Guru ब्लॉग में आपका स्वागत है। इस आर्टिकल में उत्तर प्रदेश अनुसूचित जनजातियों से संबंधित जानकारी (Uttar Pradesh Scheduled Tribes) दी गई है। जैसा कि हम जानते है, उत्तर प्रदेश, भारत का जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य है। उत्तर प्रदेश की प्रतियोगी परीक्षाओं में बहुत ज़्यादा कम्पटीशन रहता है। यह लेख उन आकांक्षीयों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो उत्तर प्रदेश सिविल सर्विस (UPPSC), UPSSSC, विद्युत विभाग, पुलिस, टीचर, सिंचाई विभाग, लेखपाल, BDO इत्यादि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे है। तो आइए जानते है उत्तर प्रदेश से संबंधित जानकारी-
उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जनजातियाँ | scheduled Tribes of Uttar Pradesh |
➤ राज्य में 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजातियों की कुल जनसंख्या 11,34,273 (0.6%) हैं।
सोनभद्र जिले में अनुसूचित जनजातियों की संख्या (3,85,018) सबसे अधिक है। उसके बाद बलिया में तथा सबसे कम बागपत में।
➤ प्रदेश में 2003 से पूर्व केवल थारू और बुक्सा को ही अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया था, 2003 में केंद्र सरकार ने प्रदेश की 10 और जनजातियों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में सूचीबद्ध किया।
➤ प्रदेश में इस प्रकार सूचीबद्ध जनजातियों की संख्या 12 हो गयी है, जो कि प्रदेश के 19 जिलों में निवास करती हैं।
नयी सूचीबद्ध जनजातियाँ इस प्रकार हैं-
उत्तर प्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ
थारू
➤ उत्तर प्रदेश में सभी जनजातियों में थारू जनजाति की जनसंख्या सर्वाधिक है।
➤ प्रदेश के तराई क्षेत्र के महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, श्रावस्ती, बहराइच एवं लखीमपुर के उत्तरी भागों में थारू जनजाति के लोग निवास करते हैं।
➤ ये किरात वंश के हैं तथा कई उपजातियों में विभाजित हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार ये लोग राजपूताना के 'थार' मरूस्थल से आकर यहाँ बसे हैं, अतः थारू कहलाते हैं।
➤ थारू लोग कद में छोटे, चौड़ी मुखाकृति और पीले रंग के होते हैं।
➤ थारू पुरुष लंगोली की तरह धोती लपेटते हैं और बड़ी चोटी रखते हैं, जो हिन्दुत्व का प्रतीक है।
➤ स्त्रियाँ ओढ़नी, चोली, रंगीन लहँगा और बूटेदार कुर्ता पहनती हैं। शरीर पर गुदना गुदवाना भी इन्हें रुचिकर लगता है। इन्हें आभूषण प्रिय हैं।
➤ थारू लोगों का मुख्य भोजन चालव है। दाल, दूध, दही तथा मछली-माँस भी खाते हैं।
➤ चावल द्वारा निर्मित 'जाड' नामक मदिरा को ये स्वयं बनाते हैं। ये सूअर और मुर्गी पालते है।
➤ थारू जनजाति में संयुक्त परिवार प्रथा है।' मुखिया परिवार का वृद्ध व्यक्ति होता है।
➤ थारूओं में वर पक्ष को विवाह के लिए कन्या पक्ष के यहाँ जाना पड़ता है। विवाह तय हो जाता है तो उसे 'पक्की पोढ़ी' कहा जाता है।
➤ थारू लोगों में विवाह रस्म का सम्पादन भर पुरोहित द्वारा कराया जाता है।
➤ थारूओं में विधवा विवाह की भी प्रथा है। इस प्रकार के विवाह में दिये जाने वाले भोज को लठभरवा भोज कहते हैं।
➤ ये लोग हिन्दू धर्म को मानते हैं। ये देवी काली को अधिक मानते हैं। भैरव और महादेव भी इनके अराध्य देव हैं। इनका शिवलिंग पत्थर का न होकर बाँस का होता है। ये राम कृष्ण की भी पूजा करते हैं।
➤ ये लोग हिन्दुओं के त्यौहार मकर संक्रान्ति, होती, कन्हैया अष्टमी (जन्माष्टमी), दशहरा और बजहर आदि मनाते हैं।
➤ फाल्गुन पूर्णिमा से आठ दिनो तक लगातार होली का पर्व मनाया जाता है। होली के दिनों में स्त्री-पुरूष दोनों ही मदिरा पीकर नृत्य करते हैं।
➤ ज्येष्ठ अथवा बैशाख के दिनों में बजहर नामक त्यौहार मनाया जाता है।
➤ थारू लोग दीपावली को ये शोक के रूप में मनाते हैं। इस दिन ये अपने पूर्वजों को भेंट आदि प्रदान करते हैं जिसे रोटी कहा जाता
➤ इनकी अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है। ये लोग - मुख्यतः धान की खेती के साथ-साथ दालें, तिलहन, गेहूँ तथा सब्जी की भी कृषि करते हैं।
➤ थारू जनजातियों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान हेतु उत्तर प्रदेश सरकार निरन्तर प्रयत्नशील है। लखीमपुर जनपद में एक महाविद्यालय थारू जनजाति हेतु स्थापित किया गया है।
बुक्सा
➤ प्रदेश के बिजनौर जिले में छोटी-छोटी ग्रामीण बस्तियों में भोक्सा या बुक्सा जनजाति निवास करती है।
➤ बुक्सा जनजाति पतवार राजपूत घरानों से सम्बंध रखती है।
➤ बुक्सा लोगों मुख्य भाषा हिन्दी है।
➤ मछली एवं चावल बुक्सा लोगों का मुख्य भोजन है। अधिकांश पुरुषों में मद्यपान की आदत होती है।
➤ बुक्सा लोगों में गाय, बन्दर और मोर का माँस खाना वर्जित है।
➤ धोती-कुर्ता, सदरी और सिर पर पगड़ी इनकी पारम्परिक वेशभूषा है।
➤ स्त्रियों के पारम्परिक पहनावे में गहरे लाल, नीले या काले रंग की छींट का लहंगा चोली (अंगिया) और उसके साथ ओढ़नी मुख्य है।
➤ बुक्सा महिलाएं राजस्थानी मेवाड़ी राजपूतों के समान सिर पर 'इडरी' के द्वारा उँफचा जूड़ा भी बाँधती हैं।
➤ सामाजिक स्तरीकरण के अन्तर्गत समाज में सबसे ऊँचा स्थान बुक्सा ब्राह्मण का होता है, उसके बाद क्रमशः क्षत्रिय बुक्सा, अहीर बुक्सा, नाई बुक्सा आदि होते हैं।
➤ ये अन्तर्विवाही होते हैं। बुक्सा समाज में विवाह एक अनुबंध मात्र होता है। इनमें अनुलोम तथा प्रतिलोम विवाह भी प्रचलित हैं
➤ साथ ही अन्तर्जातीय विवाह भी होते हैं। परिवार पितृसत्तात्मक एवं पितृवंशीय होते हैं। इनके परिवार अधिकांश संयुक्त तथा विस्तृत परिवार हैं। साथ ही केन्द्रीय परिवार भी है।
➤ ये लोग काली माई, महादेव, दुर्गालक्ष्मी, राम, कृष्ण आदि देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। सबसे बड़ी देवी काशीपुर के चामुण्डा देवी मानी जाती हैं।
➤ इनके प्रमुख त्यौहार होली, दीवाली, दशहरा, जन्माष्टमी प्रमुख हैं।
➤ ग्राम देवी की पूजा पवित्र 'थान' पर गाँव के बाहर होती है।
➤ इनका प्रमुख राजनीतिक संगठन बिरादरी पंचायत है, जो समाज में न्याय एवं शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए उत्तरदायी है।
➤ बुक्सा लोगों की बिरादरी पंचायत चार स्तरों में बँटी है जिनके सर्वोच्च अधिकारी तखत, मुसिफ, दरोगा और ➤ सिपाही नाम से जाने जाते हैं। इन सभी के अधिकार वंशगत होते हैं और इन्हें समाज में बड़े सम्मान से देखा जाता है।
➤ बुक्सा लोग धन गन्ना, मक्का, गेहूँ, चना की खेती हैं। कृषि के साथ-साथ ये गाय, भैंस, बकरी भी पालते हैं।
खरवार/खैरवार
➤ खरवार जनजाति के लोग प्रदेश के देवरिया, बलिया, गाजीपुर, मिर्जापुर तथा सोनभद्र जिलों में निवास करते हैं।
➤ इनका मूल क्षेत्र बिहार का पलामू और अठारह हजारी क्षेत्र है।
➤ आरम्भ में ये शिकारी थे। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि खरवार कत्थे का व्यापार करते थे जबकि कुछ लोग इन्हें बिहार में सोन घाटी क्षेत्र का शासक मानते हैं।
➤ ये शरीर से बलिष्ठ एवं बहादुर होते हैं। इनकी स्त्रियाँ भी पुरुषों की भाँति हिम्मती होती हैं।
➤ इनमें पुरुषों का पारम्परिक पहनावा केहुन तक धोती, गंजी एवं सिर पर पगड़ी है तथा स्त्रियों का साड़ी, चोली एवं आभूषण है।
➤ ये मुख्यतः हिन्दू धर्म के रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।
➤ ये लोग बघउस, वनसन्ती, दूल्हादेव, घमसान, गोरइया, शिव, दुर्गा, हनुमान आदि देवी-देवताओं के अतिरिक्त वृक्षों में सेमल, पीपल, नीम तथा जन्तुओं में नाग, बिच्छू आदि की पूजा करते हैं।
➤ खरवार जनजाति के लोग माँसाहारी और शाकाहारी दोनों प्रकार के होते हैं।
➤ ये लोग प्रारम्भ में जंगलों में शिकार, संग्रहण और लकड़ी काटने का काम करते थे, लेकिन इन क्रियाओं को अब सरकार द्वारा प्रतिबन्धित कर देने के कारण इन्हें मजबूर होकर भिक्षाटन करना पड़ता है।
➤ खरवार लोगों के पास कृषि योग्य भूमि नहीं है। कभी-कभी इन्हें बंधुआ मजदूरों का जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है।
बैगा
➤ उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद में बैगा जनजाति निवास करती है।
➤ बैगा द्रविड़ समुदाय की जनजाति है।
➤ 'बैगा शब्द का शाब्दिक अर्थ 'पुरोहित' होता है। इस कारण बैगा लोगों ‘पंडा' भी कहा जाता है।
➤ बैगा 'नागा बैगा' का अपना पूर्वज मानते हैं।
➤ बैगा 'ग्राम पुरोहित' होने के साथ-साथ ये चिकित्सक भी होते हैं।
➤ बैगा जनजाति का मुख्य व्यवसाय कृषि है तथा वनों की उपज पर जीवन यापन करने वाले लोग सरल भौतिक संस्कृति में जीते हैं।
गोंड
➤ 'गोंड शब्द की उत्पत्ति तमिल भाषा के शब्द 'कोड' या 'खोद' शब्द से हुई है। 'कोड' शब्द 'कोड़ा' शब्द से निकला है, जिसका अर्थ 'पर्वत' है।
➤ गोंड एवं उसकी उपजातियाँ स्वयं की पहचान 'कोया या कोयतोर' शब्दों से करती है, जिसका अर्थ मनुष्य या पर्वतवासी मनुष्य' है।
➤ गोंड़ लोग स्वयं को गोंड की बल्कि 'कोयतोर' कहलाना ज्यादा पसंद करते हैं।
➤ गोंड जनजाति का संबंध 'प्राक् द्रविड़ प्रजाति' से है।
➤ गोंड़ लोगों की मुख्य भाषा 'गोड़ी' है।
➤ शारीरिक बनावट की दृष्टि से गोड़ की त्वचा का रंग काला, बाल सी और काले होते हैं। इनके होंठ पतले, नथुने पफैले हुए, सिर चौड़ा मुँह भी चौड़ा होता है। शारीरिक गठन इनका संतुलित होता है, लेकिन ये देखने में सुन्दर नहीं होते।
➤ गोंड़ जनजाति की स्त्रियाँ पुरूषों की तुलना में कम लंबी, सुगठित और सुन्दर होती हैं। इनकी त्वचा का रंग कम काला, होठ मोटे, आँखे काली, बाल काले और खड़े होते है।
➤ गोंड जनजाति के लोग सूती वस्त्रों का प्रयोग करते हैं। पुरुष टांगों को ढकने के लिए छोटा-सा कपड़ा पहनते हैं। ये कभी-कभी सिर पर कपड़े का एक टुकड़ा बाँध लेते हैं। कुछ लोग बन्डी भी पहनते हैं।
➤ गोंड जनजाति की स्त्रियाँ चोली आदि नही पहनती। उनकी छाती का भाग खुला रहता है। गोड़ जनजाति का प्रमुख देवता 'दूल्हा देव' नागदेव, नारायण देव आदि इनके अन्य देवता है।
➤ गोंड जनजाति में विवधता एवं बहु विवाह का प्रचलन भी पाया है। इनमें 'दूध लौटावा विवाह' भी देखने को मिलता है।
➤ गोंड़ जनजाति का मुख्य भोजन माँस और वनों से प्राप्त कन्दमूल व पफल है।
➤ गोंड जनजाति बाहुल्य क्षेत्र में महुआ के वृक्षों की बहुलता है। ये लोग महुआ के फलों का शराब बनाते हैं तथा इन फलों को सूखा कर भी खाते हैं।
➤ गोड़ जनजाति में मदिरापान का काफी प्रचलन है।
➤ गोंड जनजाति का मुख्य व्यवसाय कृषि है। ये लोग शिकार के साथ-साथ जंगलों से फल-फूल, कन्दमूल, जड़ी-बूटी आदि भी एकत्रित करते हैं।
➤ कुछ गोंड़ टोकरी, रस्सी आदि बनाकर अपने समीपस्थ शहर में उसे बेचकर अपनी जीविका भी चलाते हैं।
अगरिया
➤ उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद में इनका निवास है।
➤ अगरिया जनजाति का जातीय नाम 'अग्नि' से व्युत्पन्न हुआ है।
➤ अगरिया अपने को 'लोहार' भी कहते हैं।
➤ इस जनजाति का मुख्य व्यवसाय लौह-अयस्क पिघलाना हैं।
उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जनजाति से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
➤ उत्तर प्रदेश में 2009 में अनुसूचित जनजाति श्रेणी में सूचीबद्ध की गई -10 जनजातियां
➤ 2011 के अनुसार सर्वाधिक व सबसे कम एसी आबादी व प्रतिशत वाले जिले है - सोनभद्र व बागपत
➤ उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जनजाति से रहित जिले हैं -फैजाबाद व जालौन
➤ उत्तर प्रदेश मे 2009 से पहले अनुसूचित जनजाति श्रेणी में सूचीबद्ध थीं - केवल थारू व बुक्सा जनजातियां
➤ 2011 के अनुसार राज्य की कुल जनसंख्या में जनजातियां हैं -0.6 प्रतिशत
➤ अपने को किरातवंशीय कहने वाले थारू 5 जिलों में निवास करते हैं - महाराजगंज, बलरामपपुर, लखीमपपुर, श्रावस्ती व बहराइच में
➤ बुक्सा में हिंदुओं से मिलता-जुलता मिलता है - वर्ण विभाजन
➤ सूरजवंशी, पटबंदी, दौलतबंदी, खेरी, राउत, मांगली, मोझावली, गोजूं, आर्मियां आदि उपजातियां हैं-सखरवार की खरवार हिंदू धर्म मानते हैं। इनका प्रमुख नृत्य है :करमा
➤ थारू लोगों में दहेज प्रथा का प्रचलन - नहीं है
➤ बुक्सा या भोक्सा जनजाति के लोग निवास करते हैं -बिजनौर में
➤ बुक्सा लोगों का सम्बंध माना जाता है - पतवार राजपूत वंश से
➤ थारू लोगों में विवाह बचपतियों (बिचौलियों) के माध्यम से तय होता है और विवाह रस्म का सम्मादन कराया जाता है - भर्रा (पुरोहित) द्वारा
➤ थारू लोगों में विवाह तय हो जाने को कहते है- पक्की पोढ़ी
➤ थारू हिंदू धर्म को मानते हैं लेकिन दीपावली मानते हैं - शोक रूप में
➤ बजहर है थारूओं का एक -त्यौहार
➤ होली पर आठ दिनों तक थारू स्त्री-पपुरूषों द्वारा किया जाता है - खिचड़ी नृत्य
➤ हिंदी भाषी बुक्सा हिंदू धर्म मानते हैं, इनकी सबसे पूज्य देवी है - चामुण्डा देवी
➤ बड़वायक, बंट्टा, रावत, वृत्तियां, महतो, व डहैत आदि थारूओं के हैं - गोत्र
➤ पछावन, खड्गाभूत, काली, नगरयाई देवी भूमिया (बड़ा बाबा) कारोदेव, राकत, कलुआ आदि है - थारू देवता
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