टॉप 50 कबीरदास जी के दोहे
कबीरदास जी, भारत के एक महान संत, कवि, भारतीय साहित्य का एक महान नाम हैं। कबीरदास जी 15वीं और 16वीं सदी के बीच में जन्मे थे। कबीरदास का जन्म स्थान कुश्ती नामक गाँव, जो आज़ादी के बाद भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है, माना जाता है।
कबीर के जन्म के बारे में स्पष्टता नहीं है, लेकिन उनका जन्म समय 1398 ईसा पूर्व और 1448 ईसवी के बीच में माना जाता है। यह माना जाता है कि उनका जन्म दलित समुदाय में हुआ था। कबीर के जीवन परिचय अधिकांश अज्ञात है, और उनके जीवन के बारे में अनेक परंपराएँ और किंवदंतियाँ मिलती हैं।
टॉप 50 कबीरदास जी के दोहे |
कबीरदास के दोहे, साखियाँ, और पद अनंत श्रद्धा और सामाजिक न्याय की प्रेरणा देते हैं। उनके दोहों में भक्ति, ज्ञान, और समय के साथ चिन्तन की गहराई होती है। उनके उपदेशों ने साधकों की आत्मिक साधना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी रचनाओं में ज्ञान, और भक्ति की भावना है।
कबीर के विचार आज भी लोगों के दिलों में गहरी छाप छोड़े हैं और उनके द्वारा उत्कृष्ट कविताएँ और दोहे हमें साहित्यिक, धार्मिक और सामाजिक शिक्षा प्रदान करते हैं।
कबीर दास जी के दोहे भारतीय साहित्य के अद्वितीय भाग माने जाते हैं। उनकी रचनाओं में ज्ञान, भक्ति, नैतिकता और सामाजिक संदेश को साफ़ और सरल भाषा में प्रकट किया गया है। तो आइए जानते हैं कबीरदास जी के 50 महत्वपूर्ण दोहे-
1.
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
2.
दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करैं न कोय।
जो सुख में सुमिरन करें, दुख काहे को होय।।
3.
कबीरा खड़ा बाजार में, माँगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।
4.
जो तू करे, सो भला होय, जो मैं करूँ, सो भला।
अन्य साहेब से क्या कहिये, जो तू राखे, सो थाह।।
5.
गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय।।
6.
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
7.
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूँगा तोय।।
8.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
9.
माला तू फिरे जीभ फिरे, मन वैरागी सोय।
असीस दीजै जिस दिन, जन्म अघर होय।।
10.
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय।।
11.
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
12.
बूँद समान सब डाले, बाला करे सांच।
मुख की खोजो चाहिए, राम मिलें तो मुख।।
13.
साधो, देख देख जीव फरके, प्रेम प्रीति सब चीज।
जीवन रूपी गाड़ी में, प्रेमी होगा सुंदर सजी।।
14.
बूँद समान सब डाले, बाला करे सांच।
तात की खोजो चाहिए, राम मिलें तो मुख।।
15.
जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ग्यान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।
16.
जो तो चाहे सो करें अगर दुश्मन भी मिले तो,
कांटे चला करे बाग में लाखों फूल खिलेंगे।।
17.
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर ले जो मन का होय, फिर तो विश्राम है ढेर।।
18.
कबीरा तेरी ज्ञान का, जितने कोउ बौराए।
अंत में एक आवेगा, जो लाख करो होवे समाए।।
19.
अच्छा कहो तो क्या कहो, बुरा कहो तो क्या।
अपना मन तो बीच में रहे, दुजा का मन ना सहे।।
20.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
21.
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूँगा तोय।।
22.
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय।।
23.
पीपल के पत्ता बूड़ा, पट्टा पट्टा बूड़ा।
सब को देखा बरी, लोग बोले कबीरा।।
24.
चिन्ह चिन्ह न मिले, मिली पानी भर भर।
अंधे खड़े, बांधे खड़े, बांधे सब काहे बांध।।
25.
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय।।
26.
जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ।
मैं बौरानी टंग रहा, राह देखा बिचारी।।
27.
कबीरा तेरी ज्ञान का, जितने कोउ बौराए।
अंत में एक आवेगा, जो लाख करो होवे समाए।।
28.
दुखी होवे दुख सुख में, सोई बिगड़े जाय।
मानस कहठ काढ़ि लए, बाँधें न बांधे राज।।
29.
हम हैं तो क्या गम है, जिन्हके हम न होते।
हमने जब तक धरती देखी, तिनके बिगड़े काम होते।।
30.
पंडित होति मुर्ख होति, सुनती सब कोय।
जीवन फल अपारा होता, जल तरंग जैसो होति।।
31.
आधा गाँव अधूरी छतरी, कबीर का रहा न आध।
बीसा कटा अर बीसा बचा, ते बीसा की बाध।।
32.
हँसी नाम प्रभु का लेना, दुःख में सब की साथ।
संत दुःख में न आवे, सदा समता के साथ।।
33.
जो तुझ में समाये, वो अच्छा है, वो बदल गया, तो बुरा।
तो भला, तू क्यों भला, जो बुरा सा मानै, धुरा।।
34.
जो तू तू करे, सो भला होय, जो मैं करूँ, सो भला।
अन्य साहेब से क्या कहिये, जो तू राखे, सो थाह।।
35.
कबीरा खड़ा बाजार में, माँगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।
36.
जो बूझै सो होई है, जो न बूझै सो नहीं।
कहे कबीर समझाएं, गुरु बिनु मूरख भया।।
37.
जो तुझ में समाये, वो अच्छा है, वो बदल गया, तो बुरा।
तो भला, तू क्यों भला, जो बुरा सा मानै, धुरा।।
38.
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब।।
39.
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूँगा तोय।।
40.
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय।।
41.
अच्छा कहो तो क्या कहो, बुरा कहो तो क्या।
अपना मन तो बीच में रहे, दुजा का मन ना सहे।।
42.
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर ले जो मन का होय, फिर तो विश्राम है ढेर।।
43.
आधा गाँव अधूरी छतरी, कबीर का रहा न आध।
बीसा कटा अर बीसा बचा, ते बीसा की बाध।।
44.
कबीरा तेरी ज्ञान का, जितने कोउ बौराए।
अंत में एक आवेगा, जो लाख करो होवे समाए।।
45.
जो तुझ में समाये, वो अच्छा है, वो बदल गया, तो बुरा।
तो भला, तू क्यों भला, जो बुरा सा मानै, धुरा।।
46.
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब।।
47.
जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ।
मैं बौरानी टंग रहा, राह देखा बिचारी।।
48.
कबीरा तेरी ज्ञान का, जितने कोउ बौराए।
अंत में एक आवेगा, जो लाख करो होवे समाए।।
49.
दुखी होवे दुख सुख में, सोई बिगड़े जाय।
मानस कहठ काढ़ि लए, बाँधें न बांधे राज।।
50.
हम हैं तो क्या गम है, जिन्हके हम न होते।
हमने जब तक धरती देखी, तिनके बिगड़े काम होते।।
ये दोहे कबीर दास जी की गहरी विचारधारा, समाजिक चेतना, और नैतिकता को प्रकट करते हैं और लोगों को जीवन में सही मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
उम्मीद है कबीर के दोहे लेख आपको पसंद आया होगा। इस लेख में कबीरदास जी के चर्चित दोहों का उल्लेख है। इस दोहों से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।