राजस्थान की जनजातियाँ सामान्य ज्ञान | Rajasthan Tribes GK in Hindi
नमस्कार दोस्तों, Gyani Guru ब्लॉग में आपका स्वागत है। इस आर्टिकल में राजस्थान की जनजातियों से संबंधित सामान्य ज्ञान (Rajasthan Tribes GK) दिया गया है। इस आर्टिकल में राजस्थान की जनजातियों से संबंधित जानकारी का समावेश है जो अक्सर परीक्षा में पूछे जाते है। यह लेख राजस्थान पुलिस, पटवारी, राजस्थान प्रशासनिक सेवा, बिजली विभाग इत्यादि प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है।
राजस्थान की जनजातियाँ सामान्य ज्ञान | Rajasthan Tribes GK in Hindi |
➤ सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजातियों मीणा (प्रथम), भील (द्वितीय) हैं।
➤ जनजातियों की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण जिला उदयपुर है।
➤ राज्य की भील, मीणा और अन्य जनजातियों का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से ही प्राचीन काल से ही बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है।
➤ इतिहासकारों के अनुसार भील दक्षिणी और दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान के मूल निवासी थे।
➤ भीलों को पराजित करके ही राजपूतों ने अपने राज्य स्थापित किये थे।
➤ बाँसवाड़ा जिले के कुशलगढ़ में कुशला भील का शासन था।
➤ डूंगरपुर में दूंगरिया भील का शासन था तथा बाँसवाड़ा में बाँसिया भील का शासन था।
➤ जयपुर के पूर्व राज्य आमेर पर तथा बूंदी में पहले मीणा शासकों का शासन था और कोटा में कोटिया भील का। करौली में भी मीणों का शासन था।
➤ वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में जनजातियों की जनसंख्या 70,97,706 है जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 36,50,982 तथा महिलाओं की जनसंख्या 34,46,724 है।
➤ राज्य की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जनजाति का अंश (2001) 12.56% है।
➤ इस कुल जनसंख्या में से अनुसूचित जनजाति की नगरीय जनसंख्या 3,79,876 है तथा ग्रामीण अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 67,17,830 है।
➤ राज्य की कुल जनजाति जनसंख्या के प्रतिशत को जिले के अनुसार देखें तो ज्ञात होता है कि सबसे कम जनजाति के लोग बीकानेर जिले में हैं और सर्वाधिक जनजाति के लोग उदयपुर जिले में हैं।
➤ अगर जिले की कुल जनसंख्या में जनजाति के प्रतिशत को लें, तो राज्य में बाँसवाड़ा प्रथम स्थान पर, डूंगरपुर द्वितीय तथा उदयपुर तृतीय स्थान पर है।
राज्य के जनजातीय क्षेत्र
➤ इस क्षेत्र में जनजातियों की संख्या सर्वाधिक पायी जाती है।
➤ इस क्षेत्र में अजमेर, भीलवाड़ा, अलवर, टोंक, भरतपुर, जयपुर, सवाई माधोपुर, कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़, सिरोही, उदयपुर व चित्तौड़गढ़ का कुछ भाग सम्मिलित है।
पश्चिमी राजस्थान
➤ इस भाग में राजस्थान के 11 जिले सम्मिलित किये जा सकते हैं।
➤ ये जिले श्रीगंगानगर, जैसलमेर, बीकानेर, नागौर, जोधपुर,
➤ जालौर, पाली, बाड़मेर, झुंझुनूं, चुरु व सीकर हैं।
➤ इस क्षेत्र में राजस्थान की कुल जनजातीय जनसंख्या का 7.14% भाग निवास करता है।
दक्षिणी राजस्थान
➤ इस क्षेत्र में चित्तौड़गढ़ की प्रतापगढ़, सिरोही की आबूरोड,
➤ उदयपुर की सात तहसीलें फलासिया, सराड़ा, कोटड़ा, खेरवाड़, चिरवा, लसाड़िया व सलूम्बर तथा डूंगरपुर एवं बाँसवाड़ा जिले सम्मिलित हैं।
➤ भील-मीणा जनजातियों का निवास संकेन्द्रण जालौर, बांसवाड़ा, अजमेर और डूंगरपुर जिलों में है।
निवास के आधार पर जनजातीय वितरण
➤ राज्य में पिछड़ी जनजातियों के उत्थान हेतु 1956 ई. में समाज कल्याण विभाग गठित किया गया।
➤ मार्च 1980 में राजस्थान अनुसूचित जाति विकास निगम की स्थापना की गई।
➤ जनजाति वित्त विकास निगम की स्थापना 1980 ई. में की गई थी। इसकी स्थापना गरीबी की रेखा से नीचे निवास करने वाले परिवारों के आर्थिक उत्थान के लिए की गई थी।
➤ राजस्थान जनजाति क्षेत्रीय विकास सहकारी संघ (राजस संघ) की स्थापना 27 मार्च, 1976 को हुई तथा इस संस्था का मुख्यालय उदयपुर में है।
➤ दूरस्थ क्षेत्रों में निवास करने वाले जनजाति परिवारों के बच्चों को शिक्षा की सुविधा उपलब्ध करवाने हेतु 1994 ई. में आश्रम विद्यालय स्थापित करने की नीति अपनाई गई थी।
➤ जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग के अन्तर्गत माणिक्य लाल वर्मा आदिम जाति शोध संस्थान, जनजाति क्षेत्रीय विकास सहकारी निगम, स्वच्छ परियोजना उदयपुर, एकीकृत परती भूमि विकास परियोजना डूंगरपुर तथा रेशम कीट पालन परियोजना उदयपुर कार्यरत हैं।
➤ जनजातियों के लिए ऋणग्रस्तता से मुक्ति सम्बन्धी अधिनियम, 1957 में पारित किया गया।
➤ जनजाति उपयोजना क्षेत्र में विकास को सुचारु संचालन के प्रभावपूर्ण समन्वय स्थापित करने के उद्देश्य से 1975 ई. में जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग की स्थापना 1975 ई. में की गई थी।
➤ गोमतेश्वर महादेव तीर्थ मीणाओं का, वेणेश्वर धाम भीलों का और सीताबाड़ी पवित्र धाम सहरियों के पवित्र तीर्थ स्थल हैं।
➤ भीलों की हस्तान्तरित खेती को 'दाजिया' या 'झिपटी' कहते थे।
➤ भील जनजाति के लोग वर्षों से 'सागड़ी प्रथा' (बन्धुआ मजदूरी) से जकड़े रहे हैं।
➤ राजस्थान में जनजातियों में मीणा जनजाति की संख्या सर्वाधिक है। भील का स्थान दूसरा है।
➤ मारवाड़ की मीणा जनजाति के दो उप-भाग हैं-उत्तर-पूर्व के परगने मारोढ़, नावां और सांभर के मीणा अपने को उच्च कुल का मानते हैं तथा मेवाड़ और जालौर के दक्षिण परगनाओं के निवासियों को अपने से निम्न कुल का समझते हैं।
➤ ये लोग टेडिया मीणा कहलाते हैं। इन दोनों उपजातियों में खान-पान और विवाह सम्बन्ध नहीं है।
➤ मीणा जनजाति की स्त्रियाँ अत्यंत परिश्रमी एवं साहसी होती हैं तथा कृषि और घरेलू उद्योग-धन्धों के साथ समान रूप से भागीदारी करती हैं।
➤ मीणा जनजाति में विग्रह सम्बन्धी नातेदारी तथा रक्त सम्बन्धी नातेदारी को बहुत अधिक महत्त्व दिया जाता है।
➤ ये लोग विशेषतया अपने 'बहनोई' को अत्यधिक आदर-सत्कार और उपहार आदि प्रदान करते हैं।
➤ सांसी जनजाति मूलतः एक खानाबदोश जनजाति है।
➤ ये प्रायः जंगलों में घूमते रहते हैं और पशु-मांस व फल-फूल आदि खाते हैं।
➤ सांसी जनजाति के लोग देवी-देवताओं को पूजते हैं और होली-दिवाली के अवसरों पर देवी के सम्मुख पशु-बलि चढ़ाते हैं।
➤ सामाजिक दृष्टि से सांसी अत्यन्त निम्न माने जाते हैं। इन्हें भंगियों से भी नीचा माना जाता है, क्योंकि वे भंगियों तक की जूठन खा लेते हैं।
➤ राजस्थान में सांसियों के दो उप-भाग पाये जाते हैं-बीजा और माला।
➤ ये दोनों बहिर्विवाही समूह है अर्थात कोई भी उपसमूह अपने ही समूह के अन्दर विवाह नहीं करता है।
➤ राजस्थान के लगभग 70% भील बाँसवाड़ा, डूंगरपुर तथा उदयपुर जिलों में रहते हैं और शेष 30% राज्य के अन्य भागों में।
➤ यह जनजाति प्रायः जंगलों और पहाड़ों में स्थित ग्रामों में निवास करती है।
➤ भीलों में पंचायत व्यवस्था पायी जाती है। गाँव का मुखिया ही सरपंच होता है।
➤ यह पंचायत सामान्य प्रशासन के अतिरिक्त आपसी विवादों का भी निपटारा करती है।
➤ भीलों में सामुदायिक उत्तरदायित्व की भावना भी बहुत प्रबल होती है
➤ भील अन्धविश्वासों और जादू-टोने पर अत्यधिक विश्वास करते हैं। वे अपने शव उल्टे रखकर जलाते हैं।
➤ राज्य में जनसंख्यात्मक दृष्टि से मीणा तथा भील के बाद तीसरे स्थान पर गरासिया जनजाति है।
➤ प्रायः दक्षिणी राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में बसी इस जनजाति को 'गासिया' नाम से भी पुकारा जाता
है
➤ गरासिया जनजाति अपने-अपने गाँवों में पंचायतों का गठन करती है। यह पंचायत मुख्यतः बड़े-बूढ़ों की एक परिषद होती है जिसका प्रधान या मुखिया ही गाँव का मुखिया होता है।
➤ गरासियों में विवाह की तीन रीतियाँ प्रचलित हैं—पहली 'मौरबन्धिया' (ब्रह्म विवाह), दूसरी 'पहरावना' (नाममात्र के फेरे) तथा तीसरी ताणना (वर पक्ष द्वारा वधू-मूल्य देना)।
➤ गरासियों के रीति-रिवाज हिन्दुओं से मिलते हैं किन्तु मृतकों का दाह-संस्कार नहीं होता है, वे दफनाए जाते हैं।
➤ मूलतः काथोड़िया भील हैं, परन्तु कत्थे का व्यवसाय करने के कारण इनका यह नाम पड़ गया है।
➤ काथोड़िया वर्ष के 5 माह कत्थे के व्यवसाय में संलग्न रहते हैं जबकि शेष 7 माह बेरोजगार।
➤ बेरोजगारी की हालत में यह महुआ और विषाक्त वन्य कन्दमूल कोलीकांदा पर तथा इन दोनों के अभाव में वन्य पक्षियों का शिकार करके यह मृत पशु-पक्षियों के मांस पर जीवित रहते हैं।
➤ गरासियों में एकी आन्दोलन का सूत्रपात करने वाले व्यक्ति मोतीलाल तेजावत हैं।
➤ डामोर लोगों द्वारा होली के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को थाड़िया कहते हैं।
➤ सहेरिया लोग अपनी बोली में 'ब्रजभाषा के शब्दों का अधिक प्रयोग करते हैं।
➤ भीलों की पहचान हरिया कामटी (धनुष-बाण) है।
➤ सहरिया लोगों की पहचान अपने कन्धों पर कुल्हाड़ी रखने की रही है।
➤ गरासिया बाहुल्य क्षेत्र में लगने वाले मेलों में सियावा को गौर मेला, भारवार वाराजी का मेला, कोटेश्वर का मेला, नेवटी का मेला, दोयतरा का मेला, अंबाजी का मेला, देवला का मेला तथा ऋषिकेश का मेला प्रसिद्ध है।
➤ राजस्थान की मीणा जनजाति सर्वाधिक साक्षर जनजाति है।
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